App Sabhi ko Mahashivratri ki bahut bahut badhai
Happy MahaShivRatri 2017
Maha Shiv Ratri : नास्ति शिवरात्रि परात्परम् । ‘स्कंद पुराण में सूतजी कहते हैं :
शिवो गुरुः शिवो देवः शिवो बंधुः शरीरिणाम् । शिव आत्मा शिवो जीवः शिवादन्यन्न किञ्चन ।।
सा जिह्वा या शिवं स्तौति तन्मनो ध्यायते शिवम् । तौ कर्णौ तत्कथालोलौ तौ हस्तौ तस्य पूजकौ ।।
यस्येन्द्रियाणि सर्वाणि वर्तन्ते शिवकर्मसु । स निस्तरति संसारे भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ।।
‘भगवान शिव ही गुरु हैं, शिव ही देवता हैं, शिव ही प्राणियों के बंधु हैं, शिव ही आत्मा और शिव ही जीव हैं । शिव से भिन्न दूसरा कुछ नहीं है ।
वही जिह्वा सफल है जो भगवान शिवजी की स्तुति करती है ।
वही मन सार्थक है जो शिव के ध्यान में संलग्न रहता है । वे ही कान सफल हैं जो उनकी कथा सुनने के लिए उत्सुक रहते हैं और वे ही हाथ सार्थक हैं जो शिवजी की पूजा करते हैं ।
इस प्रकार जिसकी संपूर्ण इंद्रियाँ भगवान शिव के कार्यों में लगी रहती हैं,
वह संसार-सागर से पार हो जाता है और भोग एवं मोक्ष दोनों प्राप्त कर लेता है ।
(ब्रह्मोत्तर खंड : ४.१,७,९)
ऐसे ऐश्वर्याधीश, परम पुरुष, सर्वव्यापी, सच्चिदानंदस्वरूप, निर्गुण, निराकार, परब्रह्म परमात्मा भगवान शिव की आराधना का पर्व है – ‘महाशिवरात्रि । महाशिवरात्रि अर्थात् भूमंडल पर ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भाव का परम पावन दिवस, भगवान महादेव के विवाह का मंगल दिवस, प्राकृतिक विधान के अनुसार जीव-शिव के एकत्व का बोध करने में मदद करनेवाले ग्रह-नक्षत्रों के योग का सुंदर दिवस ।
Maha Shiv Ratri : शिव से तात्पर्य है – ‘कल्याण। महाशिवरात्रि बडी कल्याणकारी रात्रि है । इस रात्रि में किये जानेवाले जप, तप और व्रत हजारों गुना पुण्य प्रदान करते हैं । ‘ईशान संहिता में भगवान शिव पार्वतीजी से कहते हैं :
फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथिः स्याच्चतुर्दशी । तस्या या तामसी रात्रि सोच्यते शिवरात्रिका ।।
तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां ध्रुवम् । न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया ।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः ।।
‘फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रय करके जिस अंधकारमयी रात्रि का उदय होता है, उसीको ‘शिवरात्रि कहते हैं ।
उस दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है । उस दिन उपवास करने पर मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ, वैसा स्नान कराने से तथा वस्त्र, धूप और पुष्प के अर्पण से भी नहीं होता ।
व्रत में श्रद्धा, उपवास एवं प्रार्थना की प्रधानता होती है । व्रत नास्तिक को आस्तिक, भोगी को योगी, स्वार्थी को परमार्थी, कृपण को उदार, अधीर को धीर, असहिष्णु को सहिष्णु बनाता है । जिनके जीवन में व्रत और नियमनिष्ठा है, उनके जीवन में निखार आ जाता है ।
शिवरात्रि व्रत सभी पापों का नाश करनेवाला है और यह योग एवं मोक्ष की प्रधानतावाला व्रत है ।
‘स्कंद पुराण में आता है :
परात्परं नास्ति शिवरात्रि परात्परम् । न पूजयति भक्त्येशं रुद्रं त्रिभुवनेश्वरम् ।
जन्तुर्जन्मसहस्रेषु भ्रमते नात्र संशयः ।।
‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढकर श्रेष्ठ कुछ नहीं है । जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है ।
Maha Shiv Ratri : शिवरात्रि में रात्रि-जागरण, बिल्वपत्र-चंदन-पुष्प आदि से शिव-पूजन तथा जप-ध्यान किया जाता है । यदि इस दिन ‘बं बीजमंत्र का सवा लाख जप किया जाय तो जोडों के दर्द एवं वायु-सम्बंधी रोगों में विशेष लाभ होता है ।
जागरण का मतलब है – ‘जागना । आपको जो मनुष्य-जन्म मिला है वह कहीं विषय-विकारों में बरबाद न हो,
बल्कि जिस हेतु वह मिला है उस अपने लक्ष्य – शिवतत्त्व को पाने में ही लगे,
इस प्रकार की विवेक-बुद्धि रखकर आप जागते हैं तो वह शिवरात्रि का उत्तम जागरण हो जाता है ।
इस जागरण से आपके जन्म-जन्मांतर के पाप-ताप कटने लगते हैं,
बुद्धि शुद्ध होने लगती है और जीव शिवत्व में जागने के पथ पर अग्रसर होने लगता है ।
अन्य उत्सवों जैसे – दीपावली, होली, मकर संक्रांति आदि में खाने-पीने, पहनने-ओढने, मिलने-जुलने आदि का महत्त्व होता है,
लेकिन शिवरात्रि महोत्सव व्रत, उपवास एवं तपस्या का दिन है ।
दूसरे महोत्सवों में तो औरों से मिलने की परंपरा है लेकिन यह पर्व अपने अहं को मिटाकर लोकेश्वर से मिलने के लिए है, भगवान शिव के अनुभव को अपना अनुभव बनाने के लिए है ।
मानव में अद्भुत सुख, शांति एवं सामथ्र्य भरा हुआ है । जिस आत्मानुभव में शिवजी तृप्त एवं संतुष्ट हैं, उस अनुभव को वह अपना अनुभव बना सकता है ।
अगर उसे शिवतत्त्व में जागे हुए, आत्मशिव में रमण करनेवाले जीवन्मुक्त महापुरुषों का सत्संग-सान्निध्य मिल जाय,
उनका मार्गदर्शन, उनकी अमीमय कृपादृष्टि मिल जाय तो उसकी असली शिवरात्रि, कल्याणमयी रात्रि हो जाय..
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महाशिवरात्रि महापर्व है शिवतत्त्व को पाने का । आत्मशिव की पूजा करके अपने-आपमें आने का ।।
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